किसी ने कहा- पहली बार इतना आरामदायक सफर किया तो कोई गोद में बच्चा लिए पैदल चली 200 किमी https://ift.tt/2ynQXEm

बीते 42 दिनों से सन्नाटे में रहे लखनऊ केचारबाग स्टेशन पर रविवार को कुछ चहलकदमी दिखाई दी। सायरन की आवाज भी आईतो स्टेशन पर ट्रेन की एनाउंसमेंट भी हो रहा था। स्टेशन के बाहर पुलिसकर्मी तो पीपीई किट में स्वास्थ्यकर्मी भी दिखाई दिए। दरअसल, रविवार को श्रमिक स्पेशल ट्रेन नासिक से 21 घंटे की यात्रा के बाद पहुंची थी। यह ट्रेन कई मायनों में अन्य ट्रेनों से अलग थी। ट्रेन की खिड़की से झांकते चेहरे ढके हुए थे तो आंखों में बाहर का नजारा देखने की ललक थी।

हर बार की तरह श्रमिकों को एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर यात्रा नहीं करनी पड़ी। बल्कि आराम से एक-एक सीट पर लेट कर पहुंचे। ट्रेन रुकते ही कुछ ने पूछा- भैया यहां से जाने के लिए कोई साधन है क्या? जवाब हां में मिलने पर उनके चेहरे पर एक अलग सुकून नजर आया।लेकिन कोई 15 दिन से तो कोई एक महीने से क्वारैंटाइनसेंटर में रहकर अंदर से टूट सा गया था। आस नहीं थी कि सरकार उनकी भी सुध लेगी। बहरहाल, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मजदूरों की स्क्रीनिंग करवाई गई। मजदूरों को बस से आगे की यात्रा में जाने के लिए लंच पैकेट भी दिए गए। ट्रेन से जितने भी मजदूर आए थे, वह सभी नासिक में अलग-अलग सेंटरों में रहकर 14 दिन का क्वारैंटाइन अवधिपूरा कर चुके हैं। ऐसे में बस से उन्हें सीधे घर भेज दिया गया है। नासिक से घर लौटे 4 मजदूरों की कहानियां, उन्हीं की जुबानी:


दिहाड़ी मजदूरी करते थे, रुपये पैसे की किल्लत हुई तो पैदल ही निकले घर के लिए
श्रावस्ती जिले के रहने वाले उमेश खिड़की के किनारे मुंह पर रुमाल लपेटे हुए बैठे हैं। वह बाहर जाने के लिए परेशान हैं, लेकिन पुलिस वालों की रौबीली आवाज सुनकर वहीं दुबके बैठे हैं। पूछने पर बताते हैं कि हम नासिक में एक महीना से क्वारैंटाइनहैं। हमारे और भी साथी वहीं पर थे। 3-4 दिन से वहां अधिकारी कह रहे थे कि हम लोगों का भेजने की व्यवस्था हो रही है। अभी होली में घर से लौट कर आए थे। दिहाड़ी काम है तो बहुत ज्यादा कमाई नहीं हुई थी। लॉकडाउन में कुछ दिन काम तो चल गया, लेकिन बाद में दिक्कत होने लगी। हम 15 लोग मुंबई से श्रावस्ती के लिए निकल लिए। लेकिन नासिक में हम लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया और सेंटर में डाल दिया। तब से वहीं रहे। ट्रेन के बारे में एक दिन पहले ही बता दिया गया था और जितने लोग ट्रेन में हैं सभी नासिक के अलग अलग क्वारैंटाइन सेंटर से ही आए हैं। ऐसे में लखनऊ से बस से बैठाकर सेंटर से बस में बिठाकर स्टेशन लाया गया और फिर ट्रेन में बिठा दिया गया। घर वालों को फोन पर बता दिया है तो कोई परेशानी नहीं है।

उमेश, श्रावस्ती।

गोद में बच्चा लिए 200 किमी पैदल चली, नासिक में पुलिस ने पकड़ लिया
सिद्धार्थनगर की रहने वाली उर्मिला की गोद में लगभग 2 साल का बच्चा नींद में मस्त कंधे पर सर रखे लेटा हुआ है। थर्मल स्कैनिंग करने वाला व्यक्ति उसके शरीर का ताप माप करना चाह रहा है। लेकिन बच्चे की गर्दन बार बार कंधे की तरफ सरक रही है। उर्मिला के पीछे ही उसका पति, भाई और बहन भी थे। उर्मिला कहती हैं कि यहां रोजगार नहीं था तो पूरा परिवार मुंबई कमाने चला गया। सब मिलकर ठीक-ठाक कमा लेते हैं। गांव में ससुर हैं और मायके में मां बाप हैं। उनका खर्च भी इससे चल जाता है। जब लॉकडाउन हुआ तो हम लोग परेशान हो गए। लगा पता नही अब यहां काम कब मिलेगा। राशन पानी खत्म हो रहा था और परेशान अलग हो रहे थे तो हम अपने परिवार के साथ पैदल ही यूपी के लिए चल दिए। 29 मार्च को हम चले और 31 मार्च को नासिक बॉर्डर क्रॉस करने वाले थे तभी पुलिस ने हम सबको पकड़ कर सेंटर में डाल दिया। एक दिन हम लोगों को भूखा भी रहना पड़ा। बच्चे को बचा-खुचा बिस्कुट वगैरह खिलाकर जिलाया। लेकिन सेंटर में आराम था। खाना पीना सब मिलता था। रोज चेकिंग भी होती थी। इधर दो दिन पहले हम लोगों को बताया गया कि हम लोग के लिए ट्रेन चलाई जाएगी। अब यहां से देखो कितना समय लगेगा।

उर्मिला, सिद्धार्थनगर।

लखनऊ पहुंच गए अब जल्द से जल्द झांसी जाना है
राम कुशवाहा अपने 15 साल के बेटे रूपेश और पत्नी सरोज के साथ नासिक से झांसी जाने के लिए आए हैं। रूपेश बताते हैं कि हम लोग नासिक मंडी में बेलदार का काम करते हैं। मंडी बन्द होने की वजह से काम बंद हो गया था। इससे जेब खर्च मुश्किल हो गया था। हम लोग भी घर जाने के लिए पैदल ही निकले थे लेकिन हमें पकड़ लिया गया तो फिर सेंटर में डाल दिया। ट्रेन में बैठने से पहले बताया गया था कि एक सीट पर एक आदमी रहेगा। जबकि बाथरूम जाने के लिए एक-एक आदमी को परमीशन मिलेगी। मास्क लगाना जरूरी था। हालांकि पहली बार इतनी आराम से यात्रा करने का मौका भी मिला। नही हो हर बार भीड़ भाड़ में ही जाना पड़ता था। बहरहाल, यहां से अब झांसी जाने की ही जल्दी है। इस बीच रूपेश की पत्नी जरूर पूछती है कि क्या खाने और पानी का भी इंतजाम है। बच्चा रूपेश चुप सा है। लेकिन घर जाने की खुशी आंखों में साफ दिखाई दे रही है।

राम कुशवाहा, झांसी।

भैया टिकट का 470 रुपया पड़ा है, बचा रखा था नही तो आ भी नही पाते
प्रयागराज के रहने वाले फूलचंद कहते हैं कि हम लोगों से 470 रुपए टिकट का लिया गया है। वह तो लॉकडाउन में कुछ पैसा बचाए थे, नही तो घर आने को भी नही मिलता। हम भी मुंबई में दिहाड़ी मजदूर हैं। एक बड़े कमरे में 17 लोग रहते हैं। लॉकडाउन के बाद जब सब पैदल चले तो हम भी चल दिए। अभी भी कई मजदूर पैदल ही आ रहे हैं। किस्मत अच्छी थी कि सेंटर पहुंच गए जहां खाने पीने की दिक्कत नहीं हुई और न ही लेटने बैठेने की। आराम से लखनऊ तक आ भी गए हैं। घर पर पत्नी है, बिटिया है, मां और पिता हैं। सब इंतजार कर रहे हैं। ये अच्छा है कि फोन वगैरह चल रहा है। सबसे बात होती रहती है। तो कोई परेशानी नही हुई।

फूलचंद, प्रयागराज।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Uttar Pradesh Migrant Labourers News | Shramik Special Train (Nasik To Lucknow) Latest News Updates | Uttar Pradesh Migrant Labourers Speaks To Dainik Bhaskar


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dbj4Ft

Post a Comment

0 Comments